भगवान श्रीराम: भगवान विष्णु के सातवे अवतार

भगवान श्रीराम-भारतीय संस्कृति और परंपरा में भगवान श्रीराम का स्थान सर्वोपरि है। वे केवल हिंदू धर्म के देवता ही नहीं बल्कि आदर्श मानव, कर्तव्यनिष्ठ पुत्र, मर्यादा पुरुषोत्तम पति और न्यायप्रिय राजा के रूप में पूजे जाते हैं। रामायण जैसे महाकाव्य में वर्णित उनका जीवन लाखों-करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनकी गाथा न केवल भारत में बल्कि सम्पूर्ण एशिया के अनेक देशों जैसे इंडोनेशिया, थाईलैंड, श्रीलंका, कंबोडिया और नेपाल में भी लोककथाओं और परंपराओं में जीवित है।

भगवान श्रीराम

 

भगवान राम का जन्म

भगवान राम का जन्म अयोध्या नगरी में त्रेतायुग में राजा दशरथ और माता कौशल्या के पुत्र रूप में हुआ। वाल्मीकि रामायण के अनुसार, राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति हेतु अश्वमेध यज्ञ और पुत्रकामेष्टि यज्ञ का आयोजन किया। यज्ञ के परिणामस्वरूप प्राप्त खीर के प्रसाद से रानी कौशल्या, कैकयी और सुमित्रा ने गर्भधारण किया और चारों भाइयों – राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ।

भगवान राम बचपन से ही तेजस्वी, विनम्र और आज्ञाकारी थे। वे गुरु वशिष्ठ और महर्षि विश्वामित्र के सानिध्य में शिक्षा प्राप्त कर धनुर्विद्या, शास्त्र और नीति में निपुण हुए। यही कारण है कि कम आयु में ही उन्होंने ताड़का और अन्य राक्षसों का संहार किया।

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सीता स्वयंवर और विवाह

जनकपुरी में आयोजित सीता स्वयंवर रामजी के जीवन का एक महत्वपूर्ण प्रसंग है। राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता का विवाह उसी वीर से कराने का संकल्प लिया जो भगवान शिव के धनुष को तोड़ेगा। अनेक राजाओं और वीरों ने प्रयास किया, परंतु सफल न हो सके। अंततः श्रीराम ने सहज भाव से धनुष को उठाकर भंग कर दिया और माता सीता को पत्नी रूप में प्राप्त किया।

 

वनवास की गाथा

अयोध्या लौटने के बाद जब श्रीराम का राज्याभिषेक निश्चित हुआ, तभी कैकयी ने अपने दो वरदानों की याद दिलाई। उन्होंने भरत को राजा बनाने और भगवान राम को चौदह वर्ष का वनवास देने की मांग की। पिता दशरथ असहाय हो गए। श्रीराम ने बिना किसी विरोध के पिता की आज्ञा को धर्म मानकर स्वीकार किया और पत्नी सीता व भाई लक्ष्मण के साथ वन की ओर प्रस्थान किया।

वनवास के दौरान श्रीराम ने अनेक राक्षसों का संहार किया और ऋषियों की रक्षा की। वनवास के सबसे हृदयविदारक प्रसंगों में से एक था – माता सीता का रावण द्वारा हरण। इसके बाद भगवान राम ने सुग्रीव से मित्रता की और भगवान हनुमान के सहयोग से माता सीता की खोज प्रारंभ की।

हनुमान जी का लंका-दहन, जटायु का बलिदान, विभीषण का राम पक्ष में आना और अंततः लंका पर चढ़ाई – ये सभी घटनाएँ रामायण के अमूल्य प्रसंग हैं, जो साहस, मित्रता और धर्म की विजय का संदेश देते हैं।

भगवान श्रीराम

 

रावण वध और धर्म की विजय

लंका के युद्ध में भगवान राम और रावण के बीच भीषण संघर्ष हुआ। रावण के दसों सिर कटने पर भी पुनः उत्पन्न हो जाते थे, किंतु अंततः राम ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर रावण का वध किया। यह प्रसंग केवल एक राक्षस के नाश का नहीं बल्कि अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है।

भगवान राम ने सीता को मुक्त कराकर मर्यादा और पतिव्रता धर्म की रक्षा की। विजयादशमी का पर्व इसी घटना की स्मृति में मनाया जाता है।

 

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अयोध्या वापसी और रामराज्य

वनवास की अवधि पूर्ण होने के बाद भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण जी अयोध्या लौटे। उनके स्वागत में अयोध्यावासियों ने घर-घर दीप जलाए। यही परंपरा आज भी दीपावली के रूप में मनाई जाती है।

रामराज्य की स्थापना भारतीय इतिहास में आदर्श शासन का प्रतिमान मानी जाती है। उस समय प्रजा सुखी, सुरक्षित और समृद्ध थी। न्याय और समानता का भाव था। राम ने सदैव धर्म और नीति के आधार पर शासन किया।

श्रीराम का व्यक्तित्व

श्रीराम के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता थी – मर्यादा। उन्हें “मर्यादा पुरुषोत्तम” कहा जाता है क्योंकि उन्होंने अपने जीवन के प्रत्येक निर्णय में धर्म और समाज की मर्यादाओं का पालन किया।

पुत्र के रूप में – पिता की आज्ञा का पालन कर वनवास स्वीकार किया।

पति के रूप में – सीता के प्रति अटूट प्रेम और समर्पण दिखाया।

भाई के रूप में – लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के साथ गहरी आत्मीयता रखी।

राजा के रूप में – प्रजा के हित को सर्वोपरि माना।

आधुनिक संदर्भ में भगवान राम

आज के समय में जब समाज अनेक चुनौतियों से जूझ रहा है, तब भगवान श्रीराम के आदर्श और भी प्रासंगिक हो जाते हैं।

राजनीति में ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा का पालन।

परिवार में त्याग, सम्मान और एकता का भाव।

समाज में न्याय और समानता की स्थापना।

कठिनाइयों के बावजूद धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने का संकल्प।

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