वराह अवतार -प्रमुख तीन देव – भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान महेश (भगवान शिव ) जिन्हे हम त्रिदेव भी कहते है, उनमे से भगवान विष्णु को सृष्टि के पालनहार के रूप में जाना जाता है। जब-जब इस संसार में अधर्म का बोलबाला होता है और धर्म की हानि होती है, तब-तब भगवान विष्णु किसी न किसी रूप में अवतरित होकर संसार की रक्षा करते हैं। इन्हीं दस प्रमुख अवतारों को “दशावतार” कहा गया है। वराह अवतार, भगवान विष्णु का तीसरा अवतार है, जिसमें उन्होंने एक विशाल वराह (सूअर) का रूप धारण कर पृथ्वी को जल से बाहर निकाला और हिरण्याक्ष नामक दैत्य का वध किया।
वराह अवतार की पौराणिक कथा
वराह अवतार की कथा का वर्णन मुख्य रूप से विष्णु पुराण, भागवत पुराण तथा मत्स्य पुराण में मिलता है। कथा के अनुसार, सृष्टि की प्रारंभिक अवस्था में ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया। उन्होंने मनुष्यों, देवताओं, ऋषियों तथा असुरों को उत्पन्न किया। इन्हीं असुरों में से एक था “हिरण्याक्ष” जो अत्यंत बलशाली और अहंकारी था। उसने कठोर तपस्या करके ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया कि उसे कोई देवता, मानव, राक्षस या पशु मार नहीं सकता।
इस वरदान से अजेय हो जाने के बाद हिरण्याक्ष ने तीनों लोकों में आतंक फैलाना शुरू कर दिया। उसने पृथ्वी माता को अपने बल से समुद्र में डुबो दिया और उन्हें पाताल में ले गया। इससे सम्पूर्ण सृष्टि का संतुलन बिगड़ गया। देवता, ऋषि और ब्रह्मा जी इस संकट से चिंतित हो उठे और भगवान विष्णु से प्रार्थना की।
भगवान विष्णु ने स्थिति को भांपते हुए एक अनोखा अवतार धारण किया – वराह का। यह वराह अत्यंत विशाल था, पर्वत समान शरीर, चमकती आँखें, और सिंह जैसी गर्जना करने वाला।
भगवान विष्णु ने वराह रूप धारण कर क्षीर सागर में छलांग लगाई और पाताल लोक की ओर बढ़े। वहां उन्होंने देखा कि पृथ्वी माता हिरण्याक्ष के बंधन में हैं और सागर की गहराइयों में डूबी हुई हैं। भगवान विष्णु ने अपने विशाल दांतों पर पृथ्वी को उठाया और उसे जल से बाहर निकालने लगे।
जब हिरण्याक्ष को यह ज्ञात हुआ कि कोई वराह पृथ्वी को लेकर ऊपर जा रहा है, तो उसने भगवान वराह को रोकने का प्रयास किया। वहां दोनों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। यह युद्ध दिन-रात चला और सम्पूर्ण सृष्टि इसकी गूंज से कांप उठी।
हिरण्याक्ष अत्यंत शक्तिशाली था, उसने अनेक अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग किया, लेकिन भगवान वराह पर उनका कोई असर नहीं हुआ। अंततः भगवान विष्णु ने अपने चक्र और गदा के प्रयोग से हिरण्याक्ष का वध किया। इस प्रकार अधर्म का अंत हुआ और पृथ्वी को सुरक्षित स्थान पर स्थापित किया गया।
भगवान वराह ने अपने दांतों पर पृथ्वी को उठाकर पुनः ब्रह्मा जी द्वारा निर्धारित स्थान पर स्थिर किया। पृथ्वी माँ ने भगवान को प्रणाम किया और आशीर्वाद दिया कि उनका यह रूप युगों-युगों तक पूजित होगा।
वराह अवतार का प्रतीकात्मक महत्व
वराह अवतार न केवल एक पौराणिक कथा है, बल्कि यह गहरे आध्यात्मिक और दार्शनिक अर्थ भी रखती है। यह अवतार दर्शाता है कि जब-जब संसार में अंधकार, अज्ञान और अन्याय का प्रभाव बढ़ता है, तब-तब दिव्य शक्ति उसे उजाले, ज्ञान और धर्म के मार्ग पर ले आती है।
यह अवतार यह भी दर्शाता है कि भगवान विष्णु अपनी सृष्टि की रक्षा हेतु किसी भी रूप में अवतरित हो सकते हैं – चाहे वह एक सामान्य जीव के रूप में ही क्यों न हो। वराह, जो सामान्यत: एक निम्न प्राणी माना जाता है, उसका भगवान द्वारा अवतार के रूप में चयन यह सिखाता है कि ईश्वर के लिए कोई रूप छोटा या बड़ा नहीं होता।
वराह अवतार की पूजा विशेष रूप से दक्षिण भारत में की जाती है। तमिलनाडु के श्रीमुष्णम और आंध्र प्रदेश के सिम्हाचलम में भगवान वराह स्वामी के प्रसिद्ध मंदिर हैं। भक्तगण इस अवतार की कथा को पढ़ते और सुनते हैं जिससे उनके अंदर धर्म के प्रति आस्था और ईश्वर में विश्वास प्रबल होता है।
वराह जयंती, जो भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है, इस दिन भक्त उपवास रखते हैं और वराह अवतार की पूजा कर कथा का श्रवण करते हैं। इस दिन भगवान वराह की प्रतिमा को स्नान, श्रृंगार और विशेष भोग अर्पित किया जाता है।
दशावतार में वराह की भूमिका
दशावतार में वराह अवतार का विशेष स्थान है। पहला अवतार मत्स्य था – जल में जीवन की रक्षा हेतु, दूसरा कूर्म – मंथन में सहायक, और तीसरा वराह – धरती की रक्षा हेतु। ये क्रमिक रूप से विकास के भी प्रतीक हैं। मत्स्य जलजीव, कूर्म उभयचर और वराह स्थलीय जीवन का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह दर्शाता है कि भगवान विष्णु का हर अवतार समय, परिस्थिति और आवश्यकता के अनुसार होता है।
आज के समय में जब मानव अपने स्वार्थ और भोगविलास के चलते पर्यावरण को हानि पहुँचा रहा है, पृथ्वी के अस्तित्व पर संकट उत्पन्न हो रहा है। ऐसे में वराह अवतार की कथा हमें याद दिलाती है कि पृथ्वी केवल संसाधनों का भंडार नहीं, बल्कि एक जीवित माता स्वरूप है जिसकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है।
भगवान वराह ने अपने प्राणों की परवाह न कर पृथ्वी की रक्षा की, और आज मानव को भी यही सीख लेने की आवश्यकता है। यह अवतार एक गूढ़ सन्देश देता है कि जब प्रकृति संकट में हो, तब हर व्यक्ति को उसकी रक्षा हेतु प्रयास करना चाहिए।
वराह अवतार केवल एक पौराणिक घटना नहीं है, यह एक दिव्य प्रतीक है — धर्म, कर्तव्य और प्रकृति की रक्षा का। भगवान विष्णु का यह रूप हमें यह सिखाता है कि चाहे संकट कितना भी बड़ा क्यों न हो, जब नीयत धर्मपूर्ण हो और संकल्प दृढ़ हो, तब अधर्म और अज्ञान का नाश निश्चित होता है।