भारतीय पौराणिक कथाओं में राक्षस जलंधर का उल्लेख एक महान और शक्तिशाली राक्षस के रूप में किया गया है, जो अपनी शक्ति के लिए प्रसिद्ध था । उसकी उत्पत्ति और जीवन की कथा अत्यंत रोचक और शिक्षाप्रद है। यह कथा धर्म, अधर्म और नारी शक्ति -तुलसी के महत्व को दर्शाती है।

जलंधर की उत्पत्ति:
पौराणिक कथा के अनुसार, जलंधर का जन्म भगवान शिव के क्रोध से हुआ था। एक बार देवराज इंद्र और देवगुरु बृहस्पति भगवान शिव के दर्शन के लिए कैलाश जा रहे थे। देवराज उस स्वर्ग के अपने सिंघासन को लेकर कुछ घमंड मे रहा करते थे। भगवान शिव देवराज की परीक्षा लेने के लिए एक साधु का वेश कर के देवराज और देवगुरु के रास्ते मे लेट गए । उन्होंने उस साधु को हटने बोला लेकिन वो साधु वंहा से नहीं उठे।
देवराज को इस पर गुस्सा आया और अपनी शक्तियों से उस साधु को हटाने का प्रयास करने लगे जब ऐसा नहीं कर पाए, तो अपना आपा खोकर अपने वजर का आवहन किया। ये देख कर महादेव को क्रोध आ गया और उन्होंने अपने असली रूप मे आकर देवराज को भस्म करने के लिए अपनी तीसरी आँख खोल दी। भगवान शंकर का रोद्र रूप देख के देवराज उनके चरणों मे गिर पड़े और उनसे क्षमा मांगी। देवगुरु बृहस्पति ने भी भगवान शिव से अपने शिष्य को क्षमा करने को कहा और उनकी बात मान कर देवराज इंद्र को जीवन दान दिया।
लेकिन जो त्रिनेत्र भगवान महादेव का खुल गया था उसकी अग्नि को भी वापस नहीं ले सकते थे, उसे भी उसके गणतव्य तक पहोचाना था। उसी अग्नि को समुंदर देव की तरफ मोड़ दिया गया, उसी अग्नि से एक बालक की उत्तपति हुई। समुद्र देव ने इस बालक को अपनाया और उसका नाम रखा जलंधर। जलंधर बचपन से ही अजेय शक्ति का स्वामी था। उसे वरदान मिला था कि जब तक उसकी पत्नी वृंदा अपनी पवित्रता बनाए रखेगी, तब तक उसे कोई पराजित नहीं कर सकेगा।
जलंधर का अभिमान और अधर्म:
अपनी शक्ति और वरदान के कारण जलंधर का अभिमान बढ़ता गया। उसने देवताओं को अपने अधीन करने और स्वर्ग पर शासन करने की योजना बनाई। उसने इंद्र, विष्णु और अन्य देवताओं को युद्ध में चुनौती दी। जलंधर ने अपनी शक्ति से स्वर्गलोक पर आक्रमण किया और देवताओं को पराजित कर दिया।
जलंधर की पत्नी वृंदा का तप:
जलंधर की पत्नी वृंदा अत्यंत पतिव्रता और धर्मनिष्ठा की मूर्ति थी। उसने अपने तप से जलंधर को अजेय बना दिया था। वृंदा का तप इतना प्रभावशाली था कि देवता भी उससे भयभीत थे। जलंधर को पराजित करने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था क्योंकि वृंदा की पवित्रता उसकी शक्ति का आधार थी।
भगवान विष्णु की योजना:
जलंधर को हराने के लिए देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी। विष्णु ने योजना बनाई और वृंदा की तपस्या को भंग करने के लिए उसका रूप बदलकर जलंधर का रूप धारण किया। विष्णु ने वृंदा को यह विश्वास दिलाया कि वे जलंधर हैं। जब वृंदा ने अपनी पवित्रता खो दी, तो जलंधर की शक्ति क्षीण हो गई। भगवान शिव ने इस अवसर का उपयोग करते हुए जलंधर का वध कर दिया।
वृंदा का शाप और तुलसी का जन्म:
जब वृंदा को अपने साथ हुए छल का पता चला, तो उसने भगवान विष्णु को शाप दिया कि वे पत्थर (शालिग्राम) के रूप में परिवर्तित हो जाएंगे। इसके बाद, वृंदा ने अग्नि में प्रवेश कर अपना जीवन समाप्त कर लिया। वृंदा की तपस्या और पवित्रता से प्रभावित होकर भगवान विष्णु ने उसे अमरत्व का वरदान दिया और उसके नाम पर तुलसी के पौधे को पवित्र मानते हुए पूजा जाने का आदेश दिया।
कथा का महत्व:
जलंधर की कथा धर्म और अधर्म के संघर्ष को दर्शाती है। यह हमें यह सिखाती है कि किसी भी व्यक्ति का अभिमान और अधर्म उसे पतन की ओर ले जाता है। साथ ही, यह कथा नारी शक्ति और पतिव्रता धर्म की महिमा को भी उजागर करती है। वृंदा का तप, त्याग और शाप आज भी तुलसी पूजा के रूप में याद किया जाता है।
तुलसी पूजन:
ये हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण परंपरा है, जिसमें तुलसी के पौधे की पूजा की जाती है। यह पूजा आमतौर पर हर रोज सुबह या शाम को की जाती है, लेकिन कुछ विशेष अवसरों पर इसका महत्व और भी बढ़ जाता है।
तुलसी पूजन की विधि इस प्रकार है:
- पौधे को साफ करें: सबसे पहले तुलसी के पौधे को साफ करें और उसके चारों ओर की जगह को भी साफ कर लें।
- जल अर्पित करें: तुलसी के पौधे को जल अर्पित करें।
- तिलक लगाएं: तुलसी के पौधे को कुमकुम या चंदन का तिलक लगाएं।
- फूल अर्पित करें: तुलसी के पौधे को फूल अर्पित करें।
- मंत्रों का जाप करें: तुलसी के मंत्रों का जाप करें।
- आरती करें: तुलसी की आरती करें।
- परिक्रमा करें: तुलसी के पौधे की परिक्रमा करें।
तुलसी पूजन का महत्व:
तुलसी को पवित्र और पूजनीय माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि तुलसी में मां लक्ष्मी का वास होता है और इसकी पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है। तुलसी का पौधा घर में लगाने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।