भगवान शिव और त्रिपुर की कथा

      भारतीय पौराणिक कथाओं में भगवान शिव का विशेष स्थान है। वे केवल विनाश के देवता नहीं हैं, बल्कि सृजन, संरक्षण और मोक्ष के प्रतीक भी हैं। त्रिपुर की कथा भगवान शिव के अद्भुत पराक्रम, उनकी करुणा और उनके अनुशासन का एक अद्भुत उदाहरण है। यह कथा धर्म, अधर्म और सत्य के मार्ग पर

भगवान शिव
भगवान शिव
कथा:

एक समय तारकासुर नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था। उसने भगवान शिव की कठोर तपस्या की। भगवान शिव उसकी तपस्या से प्रसन्न हुए और उसे दर्शन देकर वरदान मांगे को कहा। उस असुर ने वो ही किया जो बाकी सब असुर करते है, अमरता का वरदान मांग लिया। लेकिन भगवान शिव उये वरदान उसे नहीं दे सकते थे इसलिए उन्होंने कुछ और वरदान मांगने के लिए बोला। तारकासुर ने उनसे फिर ये वरदान माँगा के उसे भगवान शिव का पुत्र ही मर सके और भगवान शिव ने ऐसा ही वरदान दिया और चले गए।

   भगवान शिव उस समय एक योगी का जीवन जीते थे और विवाह नहीं रहे थे। तो तारकासुर खुद को अमर समझ कर सब लोगो को परेशान करने लगा और स्वर्ग से भी सभी देवताओं को मर भगाया। किन्तु समय का चकर घुमा और माता पार्वती से भगवान शिव का विवाह हो गया और उनके पुत्र हुए भगवान कार्तिकेय। उन्होंने उस राक्षस का वध कर के पूरी सृष्टि को उसके आतंक से बचाया।

उसी राक्षस के तीन पुत्र थे – तारकाक्ष, कमलाक्ष, और विद्युन्माली। इन्हे असुरो के गुरु शुक्राचार्य ने कहा के अगर तुक अपने पिता की मृत्यु का बदला चाहते हो तो भगवान ब्रह्मा की तपस्याकर उनसे वरदान मांगो। इन तीनों राक्षसों ने घोर तपस्या कर भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न किया। भगवान ब्रह्मा ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर वरदान मांगे जाने को कहा। इन्होने भी अमरत्व का वरदान मांगा, लेकिन भगवान ब्रह्मा ने यह कहकर मना कर दिया कि अमरत्व केवल सृष्टिकर्ता के अधीन है।

    इसके बदले में, राक्षसों ने वरदान मांगा कि वे तीन अलग-अलग नगरों में निवास करेंगे—स्वर्ण, रजत, और लोहे के—जो आकाश में विचरण कर सकते हैं। इन नगरों को त्रिपुर कहा गया। इन नगरों को केवल कोई ऐसा योद्धा ही नष्ट कर सकता था, जो देवताओं और दैत्यों से भी अधिक शक्तिशाली हो और एक ही बाण से तीनों नगरों का नाश कर सके।भगवान ब्रह्मा ने यह वरदान दे दिया।

      वरदान प्राप्त करने के बाद, त्रिपुर के तीनों राक्षसों ने ब्रह्मा के निर्देश पर मय दानव से अपने नगरों का निर्माण कराया। यह तीनों नगर अद्वितीय थे—सोने, चांदी और लोहे से बने, और आकाश में विचरण करते रहते थे। इन नगरों की शक्ति और महिमा इतनी अद्भुत थी कि इनकी तुलना किसी भी दिव्य लोक से नहीं की जा सकती थी। त्रिपुर के राजा बनते ही तारकाक्ष, कमलाक्ष, और विद्युन्माली ने अपने अधर्म और अत्याचार से तीनों लोकों को आतंकित करना शुरू कर दिया। देवता, ऋषि, मुनि और मनुष्य त्रिपुर के राक्षसों के अत्याचार से त्रस्त हो गए। सभी ने मिलकर भगवान विष्णु से सहायता मांगी।

     जब भगवान विष्णु ने देखा कि त्रिपुर का अंत केवल भगवान शिव के हाथों ही संभव है, तो उन्होंने सभी देवताओं और ऋषियों को भगवान शिव की शरण में जाने की सलाह दी। देवताओं ने भगवान शिव से त्रिपुर के आतंक से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। शिव ने देवताओं की बात सुनकर आश्वासन दिया कि वे उचित समय पर त्रिपुर का नाश करेंगे।

    त्रिपुर का नाश करने के लिए एक दिव्य रथ और विशेष अस्त्र-शस्त्र तैयार किए गए। रथ का निर्माण स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने किया। यह रथ अद्वितीय था, जिसमें सूर्य और चंद्रमा पहियों के रूप में थे, पृथ्वी रथ की धुरी थी, और भगवान विष्णु धनुष के लिए बाण बने और अग्नि देव उस बाण की नोक बने । हिमालय धनुष बने और शेषनाग उस धनुष की प्रतियाँचा बने।

भगवान शिव
भगवान शिव त्रिपुरा पर निशाना लगाते हुए

     जब त्रिपुर के तीनों नगर आकाश में एक सीध में आ गए, तो वह समय भगवान शिव के लिए त्रिपुर का नाश करने का उचित अवसर था। भगवान शिव ने अपने धनुष पर दिव्य बाण चढ़ाया और एक ही बाण से तीनों नगरों का नाश कर दिया। त्रिपुर के नष्ट होने के साथ ही अधर्म का अंत हुआ और सभी देवताओं, ऋषियों और मुनियों ने भगवान शिव की महिमा का गुणगान किया। इस विजय के बाद भगवान शिव को ‘त्रिपुरारी’ या ‘त्रिपुर संहारक’ कहा जाने लगा।

     त्रिपुर कथा का आध्यात्मिक महत्व :

     त्रिपुर की कथा केवल एक दैवीय युद्ध की कहानी नहीं है, बल्कि इसमें गहरे आध्यात्मिक और नैतिक संदेश छिपे हुए हैं:

     1. धर्म का महत्व: त्रिपुर का नाश यह दिखाता है कि अधर्म कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः धर्म ही विजयी होता है।

     2. अहंकार का नाश: त्रिपुर के राक्षस अपने अहंकार और शक्ति के कारण नष्ट हुए। यह हमें अहंकार से दूर रहने की शिक्षा देता है।

     3. भगवान शिव की भूमिका: भगवान शिव केवल विनाशक नहीं हैं; वे दुष्टों का नाश और भक्तों की रक्षा करने वाले हैं। उनका यह रूप हमें सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

   भगवान शिव का त्रिपुर संहारक रूप मंदिरों की मूर्तियों और पेंटिंग्स में देखने को मिलता है। इसके अलावा, ‘त्रिपुरार्चना’ और ‘त्रिपुर संहार’ जैसे अनुष्ठानों में भगवान शिव की पूजा की जाती है। त्रिपुर की कथा भगवान शिव की महिमा और उनकी करुणा का प्रतीक है। यह हमें यह सिखाती है कि ईश्वर केवल भक्ति और सत्य के मार्ग पर चलने वालों की सहायता करते हैं। त्रिपुर का नाश यह संदेश देता है कि अधर्म और अन्याय का अंत निश्चित है। भगवान शिव, जो योगी और महायोगी दोनों हैं, हमें सिखाते हैं कि शक्ति और अनुशासन का संतुलन ही जीवन का मूल है। त्रिपुर कथा सदैव हमें धर्म, सत्य और न्याय के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती रहेगी।

 

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