सुग्रीव और बाली रामायण के मुख्य पात्र हैं। बालि का अपने भाई सुग्रीव से युद्ध हो या सुग्रीव का प्रभु श्री राम का साथ देना। दोनो ने ही अपनी एहम भूमिका निभायी।लेकिन इनके जन्म की कथाएं भी अलग-अलग हैं और साथ में रोचक भी, आइये जानते है।

प्रथम कथा:
एक कथा के अनुसार शीलावती नाम की पतिव्रता स्त्री थी जिसका विवाह उग्रतपस नाम के एक कोढ़ी से हुआ था। उग्रतपस को वैश्यावर्ती का मोह था और उसकी पत्नी उसे लेकर वहीं जा रही थी। वेश्यालय के रास्ते में अग्निमांडव्य नामक एक भिक्षुक राजा द्वारा सूली पर लटका हुआ था। अग्निमांडव्य, जो मृत्यु के कगार पर था, ने देखा कि शीलावती अपने कोढ़ी पति को ले जा रही थी।मरते हुए उस भिक्षुक को गुस्सा आया तो उसने उग्रतपस को श्राप दिया के वो कल सुबह होने से पहले मर जाएगा।लेकिन शीलावती ने अपना पतिव्रता होने की सारी शक्ति लगा दी जिसके अगले दिन सुबह ही ना हो पाए।
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अगले दिन सुबह अरुण जो सूर्यदेव के रथ को चलने वाले हैं वो अपने समय से सूर्य देव के पास आ गए, लेकिन सूर्य देव को सोता हुआ देख के वो हेरान थे। उन्हें सूर्यदेव को उठाने का प्रयास भी करना चाहिए लेकिन वो नहीं उठे।परेशान होकर अरुण इधर उधर घुमने लगे और घुमते घुमते स्वर्ग लोक जा पहुचे।अरुण ने अंदर देखा की देवराज इंद्र अप्सराओ का नृत्य देख रहे थे। अरुण का भी मन हुआ लेकिन द्वारपालों ने उन्हें अंदर जाने नहीं दिया।अरुण ने अंदर जाने के लिए एक खुबसूरत स्त्री का वेश अपनाया और अंदर चले गये। एक सुंदर स्त्री रूप में देख के द्वारपालो ने भी उन्हें नहीं रोका।देवराज इंद्र उस स्त्री का वेश धारण किए हुए अरुण पर मोहित हो गए, जो स्वर्ग की अप्सराओं से भी सुंदर दिख रहे थे। और उनके मिलन से बाली का जन्म हुआ।
इसी बीच उस भिक्षुक ने अपना श्राप वापस ले लिया और शीलावती भी अपने पति के साथ चली गई। शीलावती के पतिव्रता धर्म की शक्ति की महिमा से जो सूर्य देव सोये हुए थे। श्राप हटने के बाद अपनी नींद से उठे और देखा कि अरुण कहीं नज़र नहीं आ रहे हैं और क्रोधित होने लगे।जब अरुण वापस लोटे तो क्रोधित सूर्य देव को सारी कहानी कह सुनाई। पर सूर्यदेव अरुण की बात का विश्वास नहीं कर रहे थे और उन्हें रूप दिखाने के लिए आदेश दिया। जब अरुण फिर से उस रूप में आए तो उनके उस रूप को देख सूर्यदेव भी मोहित हो गए। और फिर उनके मिलन से सुग्रीव का जन्म हुआ।
इंद्र देव, सूर्य देव और अरुण तीनो ही अपने इस कर्म से शर्मिंदा थे.वो सोचने लगे के अब इन बालकों का क्या करे।तो उन बालकों को लेकर ऋषि गौतम और देवी अहिल्या के पास छोड़ आए,जहां उनका पालन पोषण हुआ।लेकिन ऋषि गौतम ने देवी अहिल्या को श्राप दिया तो उन्हें वानर राज ऋक्षराज ने सुग्रीव और बाली को गोद ले लिया।
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दूसरी कथा :
एक दूसरी कथा के अनुसर भगवान ब्रह्मा के आंसू से एक वानर का जन्म हुआ जिसका नाम था ऋक्षराज। वो बहुत शक्तिशाली थे, भगवान ब्रह्मा ने उन्हें असुरों को मारने और दंड देने का काम दिया।

एक दिन ऋक्षराज एक तालाब के किनारे बैठे, उन्हें अपनी परछाई पानी में दिखी और वे उसे दुश्मन समझ के पानी मे कूद पड़े।जब वे तालाब से बाहर आए तो वो एक सुंदर स्त्री में बदल चुके थे। वही से जा रहे देवराज और सूर्यदेव ने ऋक्षराज जो एक सुंदर स्त्री में बदल गए थे, उन्हें देख के मोहित हो गए।वो स्त्री (ऋक्षराज) उन्हें देख के भागने लगी। लेकिन मोहित हुए देवताओ ने उन्हें पकड़ लिया। देवराज के तेज़ जो ऋक्षराज के बालो पर गिरा उसे बाली उत्पन हुआ और सूर्यदेव का तेज़ जो उस स्त्री के गरदन पर गिरा उस से सुग्रीव उत्पन्न हुए।
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बाली अपनी अद्वितीय शक्ति के कारण वानरों के राजा बने और उन्होंने कई अद्वितीय वीरता के कार्य किए। वह देवताओं से प्राप्त वरदानों के कारण लगभग अजेय थे। सुग्रीव उनके छोटे भाई थे, जो बुद्धिमानी और कूटनीति में निपुण थे। हालांकि, दोनों भाइयों के बीच कालांतर में गलतफहमियों के कारण मतभेद उत्पन्न हो गए। बाली के शक्ति प्रदर्शन और सुग्रीव के भय ने उनके बीच संघर्ष को जन्म दिया।
बाली के अहंकार और सुग्रीव की विवशता ने उनके संबंधों में खटास ला दी। बाद में, भगवान राम ने सुग्रीव की सहायता की और बाली को पराजित कर सुग्रीव को न्याय दिलाया। इस प्रकार, बाली और सुग्रीव की कथा हमें शक्ति, कूटनीति और भाइयों के रिश्तों की जटिलता के बारे में महत्वपूर्ण शिक्षा देती है।