सोमनाथ ज्योतिर्लिंग भगवान शिव इस जगत के हर कन कन मे बस्ते है। भगवान शिव को हम निराकार और साकार दोनों रूपो मे ही पूजते है। भगवान शिव का निराकार रूप उनके अनंत रूप को दर्शाता है और हम उस निराकार रूप को शिवलिंग के रूप मे पूजते है। शिवलिंग पर जल चढ़ाने से हमारे सारे कष्ट दूर होते है।
वैसे तो हम घर घर उनके शिवलिंग की पूजा करते है लेकिन उनके कुछ शिवलिंग ऐसे है जिनमे भगवान शिव स्वयं वास करते है जिन्हे हम ज्योतिर्लिंग कहते है। भगवान शिव के ऐसे द्वादश ज्योतिर्लिंग है और उनमे से प्रथम ज्योतिर्लिंग है सोमनाथ जी का जो की गुजरात मे स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग की उत्तपत्ति चंद्र देव को श्राप मिलने के बाद हुई थी और कथा कुछ इस प्रकार है –
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चंद्रदेव का विवाह प्रजापति दक्ष की 27 पुत्रीयो से हुआ था। उनमे से चंद्र देव रोहिणी को अत्यंत प्रेम करते थे और अपनी बाकि पत्निओ पर ध्यान नहीं देते थे जिस वजह से वे सब चंद्र देव से रुष्ट रहा करती थी। किन्तु चंद्र देव को उनसे कोई फर्क नहीं पड़ता था और सिर्फ रोहिणी के ही आस पास रहते थे।
जब ये बात प्रजापति दक्ष को पता लगी तो उन्होंने चंद्र देव को अपने भवन मे बुलवाया और उनसे ऐसा करने का कारण पूछा और उनसे उनकी बाकि पत्नियों से भी रोहिणी जैसा व्यहावर करने के लिए कहा, किन्तु चंद्र देव ने साफ इंकार कर दिया। इस पर प्रजापति दक्ष क्रोधित हो गए और चंद्र देव को शय होने का श्राप दे दिया। जिसे चंद्र देव का तेज़ एक दम से कम होने लगा।
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इससे परेशान होकर चंद्र देव इधर उधर घूमने लगे और फिर उन्हें समझ आया के सिर्फ भगवान शिव ही उनका उद्धार कर सकते है और वे इस स्थान पर पुहंचे जिस स्थान पर आज सोमनाथ मंदिर है और यंहा आकर उन्होंने भगवान शिव की घोर तपस्या की जिससे प्रसन होने बाद देवो के देव महादेव शंकर ने चंद्र को इस श्राप से मुक्त किया।
चंद्र देव ने भगवान शिव का धन्यवाद किया और उनसे कहा के प्रभु कृपया इसी स्थान पर ज्योति के रूप मे विरजमान हो जिससे आप के दर्शन कर के और सभी प्राणी भी अपना कल्याण के लिए प्रार्थना कर सके और उनके सब कष्ट नष्ट हो जाये। भगवान शिव ने चंद्र देव की ये बात मान ली और ज्योतिर्लिंग के रूप मे वंहा स्थापित हुए। उसी स्थान को हम सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से जानते है।
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सोमनाथ का अर्थ है ‘ सोम के नाथ ‘ – चन्द्रमा के ईश्वर। सोमनाथ ज्योतिर्लिंग प्रभास पटनम, सोराष्ट्र क्षेत्र मे है जो गुजरात मे पडता है। इसी स्थान पर भगवान श्री कृष्ण से अपने प्राण त्यागे थे इसी वजह से इस जगह का महत्व और बढ़ जाता है। हर साल लाखो श्रद्धालु भगवान शिव की कृपा दृष्टि पाने के लिए यंहा आते है। ऐसा माना जाता है के किसी की कुंडली मे अगर चंद्र गृह का कोई दोष अगर होता है तो यंहा दर्शन और पूजा करने से सारे दोष नष्ट हो जाते है।
सोमनाथ का ऐतिहासिक महत्त्व:
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का इतिहास भी बड़ा रोचक है इसे कई बार आक्रमणकरियो द्वारा नष्ट किया गया है और भगवान शिव की कृपा से इसका पुनारनिर्माण भी बहोत बार हुआ है। इसे मोहमद गजनवी ने सबसे पहले तोड़ा और लूटा। फिर इसका फिर निर्माण गुजरात के उस समय के राजा भीम ने करवाया। उसके बाद भी कई बार आक्रमणकरियो ने मंदिर मे तोड़ फोड़ की लेकिन हर बार इसका पुनः निर्माण भगवान शिव की कृपा से हुआ। इस समय जो मंदिर है उसे भारत की स्वतंत्रता के बाद पहले ग्रहमंत्री रहे सरदार वल्लभभाई पटेल ने करवाया था।
सोमनाथ मंदिर का इतिहास वैदिक काल से जुड़ा हुआ माना जाता है। इसे कई बार बनाया गया और नष्ट किया गया है। ऐसा मना जाता है सबसे पहला निर्माण सतयुग में स्वयं चंद्रदेव ने किया था। बाद में त्रेतायुग में रावण ने इसे चांदी से बनवाया और द्वापर युग में भगवान कृष्ण ने इसे लकड़ी से निर्मित करवाया। कलियुग में राजा भीमदेव ने इसे पत्थर से बनवाया था।
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मंदिर का कई बार विध्वंस किया गया, सबसे प्रमुख हमले 1026 ई. में महमूद गजनी द्वारा हुए। उसने मंदिर की संपत्ति लूटी और इसे नष्ट कर दिया। इसके बाद इसे कई बार पुनर्निर्मित किया गया, जिनमें प्रमुख प्रयास राजा भीमदेव, राजा भोज और अन्य हिंदू राजाओं द्वारा किए गए।
सोमनाथ मंदिर की वास्तुकला अद्वितीय है। इसका शिखर 150 फीट ऊंचा है और मंदिर के शीर्ष पर स्थित ध्वज प्रतिदिन तीन बार बदला जाता है। मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है, जिसे काले पत्थर से तराशा गया है। मंदिर के प्रवेश द्वारों पर सुंदर नक्काशी की गई है, जो भगवान शिव के विभिन्न रूपों और धार्मिक कथाओं को दर्शाती है।
वास्तुकला की विशेषताएं
मंदिर के परिसर में स्थित ‘दीप्तिमान स्तंभ’ (अरण्य स्तंभ) एक और विशेषता है। यह स्तंभ भारतीय समुद्री सीमा के अंतिम छोर का प्रतीक है और इसके आगे कोई भी भूखंड नहीं है जब तक कि अंटार्कटिका न हो।