शिव पुराण की कथा के अनुसार एक समय की बात है, समुंदर के पास बसें एक प्रदेश मे वाष्कल नाम का एक गांव था जँहा के लोग वैदिक धर्म से बिलकुल विमुख थे। वे भगवान मे बिलकुल आस्था नहीं रखते थे । उन्ही किसी चीज पर विश्वास नहीं था ना भगवान पर ना ही किस्मत पर । वे सभी दुष्ट प्रवर्ती के लोग थे जो सिर्फ अपना गुज़ारा करने के लिए खेती करते थे औऱ अपने पास बहोत खतरनाक अस्त्र औऱ शस्त्र रखते थे।
वही उसी गांव मे एक बिंदुग नाम का ब्राह्मण रहता था । वह भी अपने गांव वालों की तरह ही दुष्ट, वैदिक धर्म से विमुख था और स्वार्थी सभी का बुरा करने वाला था। वह वैश्यावृती मे ही लिप्त रहा करता था। उसकी एक सुन्दर पत्नी भी थी जिसका नाम था चंचुला। सुन्दर पत्नी होने के बाद भी वैश्ययो के पास ही जाया करता था किन्तु उसकी पत्नी धर्म को मानने वाली थी ।
वह काम से भी पीड़ित होने पर भी किसी और के समीप नहीं जाया करती थी और इस वजह से उनमे कलेश भी रहा करता था । लेकिन कुछ समय के बाद चुंचला भी अपने पति के ही रास्ते पर चल पड़ी और दोनों ही कुकर्म करने लगे। कुछ साल ऐसे ही निकल गए और एक दिन चुंचला के पति की मृत्यु का समय आया और वो चल बसा । मरने के बाद वह पापी बिंदुग नरक मे अपने कर्म भोगने के लिए गया, जंहा उसे अनेक दंड का भागी बनना पड़ा और अपना दंड भोगने के बाद विंध्य पर्वत पर एक भयंकर पिशाच बन गया।
अपने पति के मरने के बाद चुंचला अपने बेटों के साथ ही रहने लगी । बहोत वर्ष ऐसे ही बीत गए, एक दिन देवयोग से वह अपने भाई – बन्दुओ के साथ गोकर्ण तीर्थ क्षेत्र मे जा पुहंची। उस तीर्थ क्षेत्र मे उसने और तीर्थंयात्रिओ की तरह सनान किया और उसके बाद वंहा का मेला घूमने के लिए इधर उधर घूमने लगी। घूमते घूमते वह एक मंदिर मे जा पुहंची। वंहा एक ब्राह्मण देव भगवान शिव की महिमा का गुणगान शिवमहापुराण के रूप मे कर रहे थे और उसी शिव पुराण के अनुसार उन्होंने कहा के जो स्त्री पराये पुरषों के साथ व्यभिचार करती है उसे मृत्यु के बाद नरक मे जाना पड़ता है, जंहा उसे यम्दुतो के द्वारा अनेक भयानक दंड दिए जाते है ।
ये सब सुनकर वह बेचैन हो गई और डर के मारे कापने लगी और अपनी बेचैनी को दूर करने के लिए ब्राह्मण देव के पास पुहंची। चुंचला ने ब्राह्मण देव से पूछा – हे ब्राह्मण ! मैं धर्म के बारे मे कुछ नहीं जानती इसलिए मुझसे कई दुराचार हुए है, कृप्या मेरा उद्धार कीजिये। मैं नरक मे उन भयंकर यम्दुतो का सामना कैसे कर पाऊँगी जब वो मुझे तरह तरह के पापो के अलग अलग दंड देंगे , मे नहीं सेह पाऊँगी। मैं आपकी शरण मे आयी हूँ कृप्या मेरी सहायता करें ।
ब्राह्मण ने उसकी बिनती सुनी और चुंचला से कहा के तुम भगवान शिव की शरण मे जाओ, उनकी पूजा करो तुम्हारा कल्याण होगा । मैं तुम्हे सभी कष्टो और पापो को नष्ट करने वाले भगवान शिव की कीर्तिकथा से युक्त शिव महापुराण का वर्णन करूँगा जिससे तुम्हारे सारे पाप नष्ट हो जायेंगे। फिर चुंचला ने भगवान शिव की कथा – शिवमहापुराण को सुना और अपने मन को शुद्ध किया । शिव महापुराण की कथा सुनकर वो स्त्री कृतार्थ हो गयी।
फिर सही समय आने पर चुंचला की बिना किसी कष्ट के मृत्यु हो गयी। प्राण त्यागने के तुरंत बाद ही उसको लेने भगवान शिव के गणों के सहित और सभी शोभाओ से सुसजित एक दिव्ये विमान वंहा आया और चुंचला को लेकर शिव धाम पुहंच गए। जब वह शिवधाम पुहंची तो उसने भगवान महादेव को देखा । सभी देवता और गण उनकी सेवा के लिए खडे हुए थे । भगवान शिव कर्पूर के सामान सुन्दर थे उनके गले पर नीला चिन्ह था , उनके बराबर् मे देवी पार्वती थी । भगवान शिव और देवी पार्वती को देखकर वह अत्यंत प्रसन्न हुई और हाथ जोड़ कर उनके सामने खड़ी हो गयी , उसकी आँखों से आंसू आ गए । देवी पार्वती ने चुंचला को अपनी सखी बना लिया और वह ख़ुशी ख़ुशी शिवलोक मे देवी पार्वती की सखी बन कर सभी सुखो का अनुभव करने लगी ।
एक दिन वह देवी पार्वती की के पास जा उनकी स्तुति करने के बाद रोने लगी , देवी पार्वती ने उससे पूछा के हे प्रिये सखी तुम्हारी स्तुति से प्रसन्न हुई और तुम्हारे रोने का कारण मे जानना चाहती हूँ , बताओ । इस पर चुंचला ने कहा के हे गिरज़ाकुमारी , शिवप्रिया मे अपने पति बिंदुग के बारे मे जानना चाहती हूँ के वो कंहा है और किस स्तिथि मे है ।
इस पर देवी पार्वती अपनी उस सखी से कहती है के -हे सखी! तुम्हारा पति बिंदुग अत्यंत पापी होने के कारण नर्क मे अत्यंत कष्ट भोग कर एक पिसाच के रूप मे विंध्याचल पर्वत पर निवास करता है। वह वंहा विभिन्न प्रकार के कष्ट उठा रहा है और बस हवा पर ही जिन्दा है । ये सुनकर चंचुला बहोत दुखी हुई और देवी पार्वती से अपने पति के उद्धार के लिए आग्रह किया। माता पार्वती ने उससे कहा के अगर बिंदुग शिवमहापुराण की कथा को सुनले तो वो अपनी सभी दुर्गतिओ से बचकर अच्छी गति को प्राप्त हो सकता है ।
इस पर चंचुला ने देवी पार्वती से प्राथना की के उसके पति के शिवपुराण सुनने की व्यवस्था करा दे ताकि उसके पति का उद्धार हो सके । इसपर पार्वती माता ने गंधर्वराज तुम्बरों को बुलवाया और उन्हें आदेश दिया के वे चंचुला के साथ जाकर उस पर्वत पर उस पिसाच को शिवपुराण सुनाये। माता की आज्ञा लेकर वे उस पर्वत पर पुहंचे जंहा वो पिशाच रहता था। वह देखने मे बहोत विशाल था और किसी के वश मे नहीं आता था । फिर उस पिशाच. को पाशों मे बांधकर वंहा शिवपुराण की कथा की शुरुवात हुई। कथा को सुनने के लिए बहोत से अन्य देवऋषि, देवता,मनुष्य भी वंहा आगये ।
शिवपुराण की उस पावन, आत्मा को तृप्त करने वाली कथा सुनने के बाद बिंदुग अपनी पिशाच रूप को त्याग कर अपने सभी पापों से मुक्त हो एक मनुष्य के रूप मे आ गया । चंचुला अपने पति को देख कर अत्यंत प्रसन्न हुई और भगवान शिव और देवी पार्वती की जय जय कार करते हुए शिवधाम पुहंचे और भगवान शिव की कृपा से वंही रहे।