शरभ अवतार जैसे भगवान विष्णु ने संसार के उद्धार के लिए कई अवतार लिए है वैसे ही भगवान शिव ने विभिन्न अवतारों में भक्तों और देवों की रक्षा के लिए अवतार लिए है। उन्हीं में से एक महत्वपूर्ण अवतार शरभ अवतार है, जो उन्होंने भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार को शांत करने के लिए लिया था।

कथा के अनुसार, हिरण्यकशिपु जो एक महाबली राक्षस राजा था उसने भगवान ब्रह्मा के वरदान के कारण खुद को अमर समझ कर सभी देवताओं , मनुष्य , गन्धर्व आदि सहित तीनो लोको पर अपना अधिपतये कर लिया था। उसे ये वरदान था के ना उसे कोई देवता मर पाए ना कोई मनुष्य , ना कोई घर मे मार पाए ना ही बाहर , ना दिन मे ना रात मे , ना किसी अस्त्र से ना किसी शस्त्र से। उसका एक पुत्र था जिसका नाम था प्रहलाद।
प्रहलाद भगवान विष्णु के परम भक्त थे । हिरण्यकशिपु भगवान विष्णु को अपना परम शत्रु मानता था क्युकी भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर उसके भाई हीराण्याक्ष को मारा था। भगवान विष्णु की भक्ति के कारण ही वह अपने पुत्र को मरना चाहता था । तब भगवान विष्णु ने अपने भक्त की रक्षा करने लिए ही नरसिंह अवतार धारण किया, उन्होंने हिरण्यकशिपु को नरसिंघ रूप मे उसका वध कर दिया ।
उस असुर का वध करने पर भी उनका गुस्सा शांत नहीं हुआ और वे अपने रोद्र रूप मे इधर उधर घूम रहे थे । उनका रोद्र रूप इतना भयानक था कि स्वयं देवी लक्ष्मी और अन्य देवता भी उनके पास जाने से भयभीत थे। जब उनका क्रोध शांत नहीं हुआ, तो देवताओं ने भगवान शिव से सहायता की प्रार्थना की।
तब भगवान शिव ने शरभ अवतार लिया, जो आधा मानव और आधा पक्षी (एक भयावह दैवीय स्वरूप) था। इस रूप में, उनका शरीर अत्यंत विशाल था, जिसमें उनके आठ पैर, उग्र रूप, और शक्तिशाली पंख थे। उनके शरीर का कुछ हिस्सा सिंह और कुछ हिस्सा पक्षी के समान था।
भगवान शिव ने इस अवतार के माध्यम से भगवान नरसिंह को अपनी शक्तिशाली बाहों में जकड़ लिया और उन्हें शांत करने का प्रयास किया। कुछ मान्यताओं के अनुसार, उन्होंने नरसिंह को अपनी गोद में रखकर उन्हें स्नेह और प्रेम से शांत किया।
शरभेश्वर अवतार का महत्व
1. क्रोध पर नियंत्रण: यह अवतार यह दर्शाता है कि किसी भी परिस्थिति में अति क्रोध विनाशकारी हो सकता है और इसे नियंत्रित करना आवश्यक है।
2. परम दयालुता: भगवान शिव ने नारसिंह को हानि नहीं पहुंचाई, बल्कि उन्हें शांत किया और उनके भीतर संतुलन स्थापित किया।
3. शक्ति एवं शांति का मेल: यह कथा यह भी बताती है कि भगवान शिव और भगवान विष्णु के बीच कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है, बल्कि वे सृष्टि के संतुलन को बनाए रखने के लिए एक साथ कार्य करते हैं।
कुछ परंपराओं में यह भी कहा गया है कि जब भगवान शिव ने सर्बा अवतार लिया, तब भगवान विष्णु ने एक और रूप धारण किया, जिसे गंधभेरुंड अवतार कहा जाता है। यह एक दो-मुँह वाले गरुड़ के समान था, जिसने सर्बा रूप के शिव से शक्ति प्राप्त की और अंततः क्रोध पर विजय पाई।
शरभ अवतार की पूजा विशेष रूप से दक्षिण भारत में की जाती है, और इसे ‘शरभेश्वर’ के नाम से भी जाना जाता है। इसे रुद्रावतार माना जाता है, जो यह दर्शाता है कि भगवान शिव न केवल संहारक हैं, बल्कि शांति और संतुलन स्थापित करने वाले भी हैं।
भगवान शिव का यह अवतार दर्शाता है कि भले ही शक्ति और क्रोध की असीमित क्षमता हो, लेकिन उसे संतुलित और नियंत्रित रखना ही वास्तविक दिव्यता है। यह कथा भगवान शिव की सर्वोच्च कृपा, धैर्य और करुणा को दर्शाती है।