मत्स्य अवतार: सृष्टि की रक्षा का पहला अध्याय

मत्स्य अवतार -हिंदू धर्म में भगवान विष्णु को पालन करने वाले देवता माना गया है, जो समय-समय पर संसार की रक्षा के लिए अवतार लेते हैं। श्री हरी विष्णु के दस प्रमुख अवतारों को ‘दशावतार’ कहा जाता है। इन दशावतारों में प्रथम अवतार मत्स्य अवतार है, जिसमें भगवान विष्णु ने एक मत्स्य यानि मछली का रूप धारण किया था। यह अवतार न केवल पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से भी अत्यंत प्रभावशाली है।

मत्स्य अवतार की कथा

यह कथा सतयुग की है, जब संसार में धर्म की स्थापना प्रारंभिक चरण में थी। एक बार पृथ्वी पर चारों ओर अधर्म, अज्ञान और अराजकता फैलने लगी। मनुष्यों ने वेदों और धर्मशास्त्रों का पालन करना छोड़ दिया था। राक्षसों और असुरों का प्रभाव बढ़ गया था। इसी समय एक महान जलप्रलय (प्रलय) की भविष्यवाणी हुई, जो पूरी सृष्टि को नष्ट करने वाला था।

मत्स्य अवतार की कथा में एक महत्वपूर्ण पात्र हैं – राजा सत्यव्रत, जो आगे चलकर वैवस्वत मनु बने, जो इस मंन्वंतर के मनु भी है । वे भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे । राजा की भक्ति से प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने राजन की परीक्षा लेनी चाही और फिर छोटी मछली का रूप ले लिया और जब एक बार राजा सत्यव्रत नदी में स्नान कर रहे थे, तभी उन्होंने एक छोटी सी मछली को अपने हाथों में पाया। मछली ने राजा से विनती की, “हे राजन, मुझे जल के बड़े स्थान की आवश्यकता है। कृपया मेरी रक्षा करें।”

राजा ने अपने महल मे ले जाकर एक बर्तन मे डाला तो कुछ देर बाद बर्तन छोटा पड़ गया। राजा इस चीज को देखकर हैरान के ये कैसे हो सकता है, फिर भी राजा ने उस मछली को और बड़े बर्तन मे डाला और फिर से वो ही हुआ, मछली फिर से बर्तन से बड़ी हो गयी । उसके बाद मछली को तालाब में डाला, फिर झील में, फिर नदी में और अंततः समुद्र में, लेकिन वह मछली हर बार आकार में बड़ी होती गई। राजा को यह ज्ञात हो गया कि यह कोई साधारण मछली नहीं, बल्कि स्वयं भगवान विष्णु हैं।

राजा ने भगवान नारायण को प्रणाम किया और उनसे उनके असली रूप मे आने का आग्रह किया । भगवान विष्णु ने प्रकट होकर उन्हें बताया कि शीघ्र ही एक महाप्रलय आने वाला है, जो संपूर्ण पृथ्वी को जल में डुबो देगा। भगवान ने राजा को एक विशाल नौका (नाव) बनाने का आदेश दिया और यह भी कहा कि वह सप्तऋषियों, वनस्पतियों के बीज, पशुओं की जोड़ी और वेदों को लेकर उस नौका में सवार हो जाएं।

प्रलय के समय, भगवान विष्णु सिंघनाद करते हुए एक विशालकाय मत्स्य रूप में प्रकट हुए और उन्होंने नाव को अपने सींग से बांधकर सुरक्षित रूप से प्रलय के जल में ले जाकर उसे मेरु पर्वत पर स्थिर किया। इस प्रकार, सृष्टि के मूल तत्त्व सुरक्षित रहे।

उसी समय इसी घटनाक्रम से साथ ही जब पृथ्वी जलमग्न होने वाली थी तो वेदो को चुरा कर एक दैत्य हयग्रीव जिसका सर एक घोड़े का था और शरीर आदमी का, उसने वेदो को समुद्र में छुपा दिया था। भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में उस दैत्य का वध किया और वेदों को पुनः प्राप्त कर सत्यव्रत को सौंप दिया।

प्रतीकात्मक अर्थ और गूढ़ार्थ

1. सृष्टि का नवसृजन

मत्स्य अवतार एक ‘सृजन के पूर्व की तैयारी’ का प्रतीक है। यह बताता है कि जब पुरानी व्यवस्था नष्ट होती है, तो ईश्वर नई व्यवस्था की नींव रखते हैं। नाव प्रतीक है उस माध्यम का, जो धर्म, ज्ञान और जीवन के मूल्यों को नई पीढ़ी तक सुरक्षित पहुंचाता है।

2. जल का महत्व

जल प्राचीन भारतीय परंपरा में जीवन का आधार माना गया है। जलप्रलय केवल विनाश का संकेत नहीं, बल्कि पुनर्निर्माण और पवित्रता का भी प्रतीक है। जल में जन्म, जल में विसर्जन – यही जीवनचक्र है।

3. धर्म की पुनः स्थापना

हयग्रीव द्वारा वेदों की चोरी दर्शाता है कि जब अधर्म वेद-ज्ञान को निगल लेता है, तब ईश्वर को स्वयं आना पड़ता है। मत्स्य अवतार, ईश्वर द्वारा धर्म और ज्ञान की पुनः स्थापना की प्रेरणादायक कथा है।

भारतीय कला और मंदिर स्थापत्य में मत्स्य अवतार का चित्रण मिलता है। खासकर दक्षिण भारत के मंदिरों में भगवान विष्णु के मत्स्य रूप को बड़े ही अलंकारिक और भव्य रूप में दर्शाया गया है। मछली का चेहरा और मानव की देह – यह सम्मिलित स्वरूप दर्शाता है कि ईश्वर सब रूपों में विद्यमान हैं।

अनेक लोककथाओं और भक्ति गीतों में मत्स्य अवतार की महिमा गाई जाती है। केरल और कर्नाटक में यक्षगान और कूथु जैसे लोकनाट्यों में यह कथा लोकप्रिय है। ओडिशा में मत्स्य अवतार से जुड़ी लोक-मान्यताएँ भी प्रचलित हैं।

कुछ विद्वान मत्स्य अवतार को डार्विन के विकासवाद के दृष्टिकोण से भी जोड़ते हैं। डार्विन के अनुसार जीवन की शुरुआत जल में हुई थी और पहला जीव जलचर था। इस दृष्टि से मत्स्य अवतार को जीवन के प्रारंभिक चरण के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।

मत्स्य अवतार यह सिखाता है कि जब संसार में संकट आता है, तो धार्मिकता, संयम और भक्ति ही बचाव का मार्ग बनते हैं। सत्यव्रत की भक्ति, विनम्रता और सेवा भाव ही उन्हें ईश्वर की कृपा प्राप्त कराते हैं।

मत्स्य अवतार केवल एक पौराणिक कथा नहीं है, बल्कि यह एक गूढ़ और गहन प्रतीकात्मक शिक्षण है। यह हमें बताता है कि सृष्टि चक्र में विनाश और सृजन निरंतर चलते रहते हैं, लेकिन धर्म, ज्ञान और श्रद्धा के माध्यम से जीवन की निरंतरता बनी रहती है। भगवान विष्णु का यह प्रथम अवतार इस तथ्य का प्रतीक है कि जब भी अधर्म बढ़ता है, तब ईश्वर अवतरित होकर धर्म की रक्षा करते हैं – चाहे वह रूप मछली का ही क्यों न हो।

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