भगवान पशुपति और पशुपतिनाथ मंदिर: करुणा, दया और आध्यात्मिकता का प्रतीक

भारतीय संस्कृति और धर्म में भगवान शिव को “पशुपति” के नाम से भी जाना जाता है। “पशुपति” का अर्थ है “पशुओं के स्वामी” या “सभी जीव-जंतुओं के अधिपति।” यह नाम भगवान शिव की करुणा, शरणागत वत्सलता और समस्त जीवों के प्रति उनकी दया का प्रतीक है। भगवान पशुपति की कथा मुख्य रूप से नेपाल के प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर से जुड़ी हुई है, जो उनके अनन्य भक्तों के लिए श्रद्धा और आस्था का प्रमुख केंद्र है।

पशुपति

पशुपतिनाथ
भगवान पशुपतिनाथ

पशुपति नाम की उत्पत्ति

“पशु” शब्द का अर्थ केवल जानवरों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका व्यापक अर्थ है अज्ञानता के बंधन में बंधा हुआ जीव। “पति” का अर्थ है स्वामी। भगवान शिव को पशुपति कहा जाता है क्योंकि वे जीवों को अज्ञानता और संसार के बंधनों से मुक्त करने वाले हैं। उन्होंने केवल मनुष्यों के लिए ही नहीं, बल्कि समस्त जीव-जंतुओं, प्रकृति और ब्रह्मांड के हर कण के लिए करुणा और दया का संदेश दिया है।

पशुपतिनाथ मंदिर का महत्व

नेपाल की राजधानी काठमांडू के पास बागमती नदी के किनारे स्थित पशुपतिनाथ मंदिर भगवान शिव के पशुपति रूप का सबसे प्रसिद्ध स्थान है। यह मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल है। माना जाता है कि इस स्थान पर भगवान शिव ने स्वयं प्रकट होकर भक्तों को दर्शन दिए। इस मंदिर का शिवलिंग अष्टमुखी है, जो भगवान के आठ दिशाओं में फैले हुए प्रभाव को दर्शाता है।

पशुपति बनने की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव और माता पार्वती कैलाश पर्वत पर बैठे हुए थे। उस समय, भगवान शिव ने सोचा कि वह अपने अनन्य भक्तों के बीच पृथ्वी पर जाकर कुछ समय बिताएं। उन्होंने एक सुंदर हिरण का रूप धारण किया और जंगल में चले गए।जब भगवान शिव हिरण रूप में जंगल में विचरण कर रहे थे, तो उनकी सुंदरता और तेज से अन्य सभी हिरण उनके प्रति आकर्षित हो गए। जल्द ही भगवान शिव जंगल के हिरणों के झुंड के नेता बन गए। जब देवताओं को यह बात पता चली कि भगवान शिव जंगल में हिरण बनकर विचरण कर रहे हैं, तो वे परेशान हो गए।

देवताओं ने माता पार्वती से यह बात बताई और उनसे अनुरोध किया कि वह भगवान शिव को अपने असली रूप में लौटने के लिए कहें। माता पार्वती ने शिवजी को ढूंढने के लिए देवताओं के साथ जंगल में प्रवेश किया। जब उन्होंने भगवान शिव को हिरण के रूप में देखा, तो उन्होंने उन्हें अपने असली रूप में लौटने के लिए कहा।शिवजी ने मुस्कुराते हुए कहा, “मैं पशुओं का स्वामी हूं। मैं हर जीव के भीतर हूं।” यह कहकर उन्होंने अपने असली रूप में प्रकट होकर सभी को आशीर्वाद दिया। तभी से उन्हें “पशुपति” कहा जाने लगा।

एक अन्य कथा के अनुसार भगवान शिव औऱ देवी पार्वती घूमते हुए बाग़माती नदी के किनारे आ पहुछे। उन्हें वंहा का नज़ारा अच्छा लगा तो उन्होंने हिरन का रूप धारण कर के वंहा रहने का मन बना लिया।किन्तु देवता लोग चाहते थे के भगवान शिव अपने कर्त्तव्य के विमुख ना होकर अपने कर्म को करे। भगवान शिव ने ऐसा करने से मना कर दिया औऱ हिरन के रूप को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे । उसी हिरन रूप मे भगवान महादेव का युद्ध देवताओं से हुआ औऱ उनका एक सींग टूटकर गिर गया।
बाद मे जब सभी देवता गण भगवान शिव को मनाने मे सफल रहे तो भगवान शिव ने उस टूटे हुए सींग से अपना एक शिवलिंग प्रकट किया औऱ कहा के मे अपने ज्योति स्वरुप मे इसी स्थान पर निवास करूँगा। औऱ इस प्रकार भगवान शिव के पशुपति नाथ लिंग की उत्तपति हुई ।
बाद मे वह शिवलिंग समय के साथ खो गया औऱ उसका किसी मनुष्य को नहीं पता लगा औऱ एक अन्य कथा के अनुसार एक गाय चराने वाले ने एक दिन देखा के उसकी गाय एक जगह पर जाकर रोज दूध डाल आती है औऱ जब इस चीज को जाँचने औऱ परखने के लिए उस गाय के पीछे गया औऱ वंहा खुदाई की वंहा ये भगवन शिव के पशुपतिनाथ लिंग मिला।

भगवान पशुपति का नाम हमें यह सिखाता है कि सभी जीवों के प्रति दया, करुणा और प्रेम का भाव रखना चाहिए। शिवजी ने हमें यह संदेश दिया कि केवल मनुष्य ही नहीं, बल्कि पशु-पक्षी और प्रकृति के हर हिस्से का सम्मान करना हमारा कर्तव्य है।

पशुपति के पंचमुखी रूप

पशुपतिनाथ के पंचमुखी स्वरूप का भी बहुत महत्व है। उनके ये पांच मुख उनके पंचतत्वों (भूमि, जल, अग्नि, वायु, आकाश) और पांच प्रमुख तत्वों (सत्य, शांति, करुणा, ज्ञान, और त्याग) का प्रतीक हैं।
1. सद्योजात: यह मुख पश्चिम दिशा में स्थित है और रचनात्मकता का प्रतीक है।
2. वामदेव: यह उत्तर दिशा में स्थित है और संरक्षण का प्रतीक है।
3. अघोर: यह दक्षिण दिशा में स्थित है और विनाश के साथ-साथ पुनः सृजन का प्रतीक है।
4. तत्पुरुष: यह पूर्व दिशा में स्थित है और ध्यान व योग का प्रतीक है।
5. ईशान: यह ऊपर की दिशा में स्थित है और सर्वव्यापकता का प्रतीक है।

भगवान शिव के पशुपति रूप से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि हर जीव समान है। उनके लिए कोई छोटा या बड़ा नहीं है। वे सभी जीवों के प्रति समान रूप से करुणा का भाव रखते हैं। उनका यह रूप हमें जीव-जंतुओं और प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर चलने का संदेश देता है।

पशुपतिनाथ मंदिर में पूजा-अर्चना

पशुपतिनाथ मंदिर में भक्तों द्वारा की जाने वाली पूजा का विशेष महत्व है। यहां महाशिवरात्रि के अवसर पर लाखों श्रद्धालु आते हैं और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। बागमती नदी में स्नान करने के बाद भगवान पशुपति के दर्शन करना शुभ माना जाता है।

भगवान पशुपति का चरित्र हमें सहिष्णुता, करुणा और प्रेम का संदेश देता है। उनके पशुपति स्वरूप से यह शिक्षा मिलती है कि हमें हर जीव और प्रकृति का सम्मान करना चाहिए। उनका आशीर्वाद पाने के लिए केवल पूजा ही नहीं, बल्कि उनके गुणों को अपने जीवन में उतारना भी आवश्यक है। इस प्रकार, भगवान पशुपति की कथा हमें मानवता, दया और आध्यात्मिकता की ओर प्रेरित करती है।

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