भगवान परशुराम– भगवान विष्णु का छठा अवतार परशुराम जी के रूप में हुआ था। यह अवतार अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह अवतार न केवल धर्म की रक्षा के लिए था, बल्कि अधर्म और अत्याचार के विरुद्ध एक प्रतिशोधात्मक क्रांति भी था। परशुराम जी को ब्रह्मक्षत्रिय कहा जाता है – अर्थात ब्राह्मण होते हुए भी उन्होंने क्षत्रिय गुणों को अपनाया। वे एकमात्र ऐसे अवतार हैं जो चिरंजीवी माने जाते हैं और अभी भी इस पृथ्वी पर विद्यमान हैं।

जन्म:
परशुराम जी का जन्म महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका के घर हुआ था। वे भृगु ऋषि की वंश परंपरा से थे। उनका जन्म स्थल आधुनिक उत्तरप्रदेश का वर्तमान बुंदेलखंड क्षेत्र माना जाता है। उनका असली नाम था ‘राम’। लेकिन जब उन्होंने अपने परशु (कुल्हाड़ी) से अधर्मी क्षत्रियों का संहार किया, तब से उन्हें ‘परशु’ + ‘राम’ = ‘परशुराम’ कहा जाने लगा।
बाल्यकाल और शिक्षा:
परशुराम जी का बचपन ऋषियों के बीच आश्रम में बीता। उन्होंने वेद-शास्त्रों के साथ-साथ युद्धकला, अस्त्र-शस्त्र विद्या और ब्रह्मास्त्र की दीक्षा महादेव (भगवान शिव) से प्राप्त की। शिवजी ने उन्हें अपना परम शिष्य माना और उन्हें त्रिशूल, धनुष-बाण, और परशु जैसे दिव्य अस्त्र प्रदान किए।
परशुराम जी का क्रोध और क्षत्रियों का संहार
एक कथा के अनुसार, हैहय वंश के राजा सहस्रार्जुन (कार्तवीर्य अर्जुन)को पता लगा के ऋषि जमदग्नि के पास कामधेनु गाय है जो हर इच्छा को पूरी कर सकती है, तो ये सोच के ऐसी वस्तु उसके पास होनी चाहिए और उसको लेने के लिए उसने अपने सैनिको को भेजा किन्तु ऋषि जमदग्नि ने उन्हें माना कर दिया । इस पर क्रोधित होके राजा ने भगवान परशुराम के पिता जमदग्नि ऋषि का अपमान किया और उनका कामधेनु गाय छीन ली। परशुराम जी उस समय आश्रम में नहीं थे। जब वे लौटे और पिता की व्यथा सुनी, तो उनका क्रोध प्रचंड हो उठा। उन्होंने सहस्रार्जुन का वध किया और उसके पुत्रों द्वारा पुनः उनके पिता की हत्या करने पर उन्होंने प्रतिज्ञा की – “मैं पृथ्वी को क्षत्रियों से रहित कर दूंगा।”
इस प्रतिज्ञा के तहत उन्होंने 21 बार पृथ्वी पर फैले अधर्मी क्षत्रियों का संहार किया। वे धर्म की स्थापना के लिए हिंसा का उपयोग करने वाले एकमात्र ब्राह्मण माने जाते हैं।
परशुराम जी का तप और क्षमाभाव:
हालांकि परशुराम जी क्रोध के लिए विख्यात थे, वे उतने ही तपस्वी और धर्मनिष्ठ भी थे। क्षत्रियों का संहार करने के बाद उन्होंने सारा पाप मिटाने के लिए वर्षों तक तपस्या की ।स्वयं उन्होंने पश्चिमी भारत में महेंद्र पर्वत पर निवास आरंभ किया।
प्रमुख घटनाएं परशुराम जी के जीवन से:
1. रामायण में भूमिका:
रामायण काल में परशुराम जी की भूमिका अत्यंत रोचक रही। जब भगवान श्रीराम ने जनकपुर में शिव धनुष (पीनाक ) को तोड़ा, तो परशुराम जी वहाँ पहुँचे और क्रोधित हो गए। उन्हें लगा कि कोई सामान्य मनुष्य शिव का धनुष कैसे तोड़ सकता है। लेकिन जब उन्होंने श्रीराम की दिव्यता को समझा, तो शांत हो गए और उन्हें अपना आशीर्वाद दिया।
2. महाभारत में भूमिका:
महाभारत में परशुराम जी ने भीष्म पितामह और दानवीर कर्ण को शिक्षा दी थी। उन्होंने भीष्म को ब्रह्मास्त्र प्रयोग की विद्या सिखाई थी। कर्ण को भी उन्होंने दिव्य अस्त्रों की दीक्षा दी, परंतु जब उन्हें ज्ञात हुआ कि कर्ण क्षत्रिय है, तो उन्होंने उससे दिव्यास्त्र वापस ले लिया।
3. भगवान शिव से युद्ध:
एक कथा के अनुसार परशुराम और भगवान शिव के बीच युद्ध भी हुआ था। परशुराम जी अपने अभिमान के कारण भगवान शिव से भिड़ गए थे। युद्ध में उन्होंने भगवान शिव को घायल कर दिया, लेकिन जब उन्हें अहसास हुआ कि वे अपने गुरु से युद्ध कर रहे हैं, तो उन्होंने क्षमा मांगी।
परशुराम जी और उनके शिष्य
परशुराम जी के शिष्यों में भीष्म, द्रोणाचार्य, कर्ण जैसे महान योद्धा रहे हैं। उन्होंने अपने शिष्यों को केवल अस्त्र विद्या नहीं, बल्कि धर्म, मर्यादा, और नैतिकता की शिक्षा भी दी। उनके द्वारा प्रदत्त ज्ञान और अस्त्रों के बल पर उनके शिष्यों ने महाभारत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
भगवान परशुराम का शस्त्र – परशु
परशुराम जी का सबसे प्रसिद्ध शस्त्र उनका परशु (कुल्हाड़ी) था, जो उन्हें भगवान शिव से प्राप्त हुआ था। यह परशु एक दिव्य अस्त्र था जो कभी चूकता नहीं था और इच्छानुसार लौट आता था। यह शस्त्र न केवल युद्ध का प्रतीक था, बल्कि न्याय और धर्म की रक्षा का भी प्रतीक बन गया।
चिरंजीवी :
पुराणों के अनुसार परशुराम जी चिरंजीवी हैं और सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग से लेकर कलियुग में भी जीवित हैं। भविष्य पुराण में वर्णित है कि वे कल्कि अवतार के गुरु बनेंगे और उन्हें दिव्य अस्त्रों की दीक्षा देंगे। ऐसा कहा जाता है कि वे आज भी तपस्या में लीन हैं और महेंद्र पर्वत या हिमालय क्षेत्र में निवास करते हैं।
वर्तमान में परशुराम जी की पूजा और मंदिर
भारत में अनेक स्थानों पर परशुराम जी के मंदिर हैं, विशेषकर उत्तरप्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, केरल और महाराष्ट्र में। परशुराम जयंती अक्षय तृतीया के दिन मनाई जाती है। केरल में माना जाता है कि परशुराम जी ने अपने परशु से समुद्र को पीछे हटाकर भूमि बनाई थी – जिसे वर्तमान केरल राज्य कहा जाता है।
भगवान परशुराम का अवतार धर्म की स्थापना, अन्याय के विनाश और संतुलन की पुनर्स्थापना के लिए हुआ था। वे एक ऐसे अवतार हैं जो क्रोध और करुणा, शक्ति और संयम, युद्ध और योग – इन सभी का अद्भुत संतुलन हैं। उनका जीवन हमें सिखाता है कि धर्म की रक्षा के लिए संकल्प, साहस, और तपस्या – सभी की आवश्यकता होती है।
परशुराम जी न केवल भारतीय धर्म और संस्कृति के प्रतीक हैं, बल्कि एक ऐसे युगपुरुष हैं जिनकी उपस्थिति आज भी लोगों को प्रेरणा देती है। उनके सिद्धांत, शिक्षाएं और व्यक्तित्व आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने हजारों वर्ष पहले थे।