भगवान शिव का नटराज रूप हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और गूढ़ प्रतीक है, जो न केवल धार्मिक आस्था बल्कि गहरे आध्यात्मिक और दार्शनिक अर्थों को भी व्यक्त करता है। नटराज का अर्थ है ‘नृत्य का राजा’ और यह रूप शिव के उस पहलू को प्रस्तुत करता है जो सृष्टि, पालन, और संहार का प्रतिनिधित्व करता है। इस रूप में शिव की नृत्य मुद्रा न केवल एक अलंकरण है, बल्कि यह जीवन के चक्र और ब्रह्मांड के संतुलन को दर्शाने वाला महत्वपूर्ण प्रतीक भी है।
भगवान शिव के नटराज रूप से हम सभी अच्छे से अवगत है। लेकिन उनके पर के नीचे कोनसा असुर है ये बहोत कम लोग जानते है।
कथा :
एक कथा के अनुसार एक अप्समार नाम का का एक असुर था वह दिखने मे एक बोने जैसा था। किन्तु वह अज्ञान, अहंकार और भ्रम का देवता भी कहा जाता था।

अप्समार को अपने अमर होने का बहोत ज्यादा घमंड था। वह जानता था की उसे कोई भी देव या भगवान मार नहीं सकते थे क्योकि अगर उसकी मृत्यु हो जाती तो संसार मे अज्ञानता खत्म हो जाती और हर जगह ज्ञान का संचार पुर्ण रूप से होता, जिससे पूरी सृष्टि का संतुलन बिगड़ जाता।इसी बात का फायदा उठाकर वह लोगो और देवताओं को सताया करता था। कई बार देवराज इंद्र और अन्य देवताओ ने उसे रोकने और दंड देने का प्रयास किया, किन्तु वह उन्हें अपने भ्रम के जाल मे फसा कर बच
और पढ़े: वृत्रासुर-एक महर्षि द्वारा प्रकट महाअसुर
उसकी इन हरकतो से परेशान हो सभी देवता देवराज इंद्र सहित भगवान शिव के पास गए और उनसे प्रार्थना की के उस अप्समार को नष्ट कर दे। भगवान शिव ने उनकी प्रार्थना को स्वीकार करते हुए अप्समार की अराजकता से बचाने का वचन दिया। भगवान शिव ने अप्समार को पहले समझाया, पर वह अपने भ्रम की माया भगवान शिव पर चलाने लगा, भगवान शिव पर उसकी शक्तिओ का कोई असर नहीं हो सका क्योकि भगवान शिव सब चीज़ो से परे है चाहे वो माया हो या भ्रम या अज्ञान।भगवान शिव ने फिर समझाया पर वो अपनी उदंडता मे लगा रहा।

जब वह नहीं मना तो भगवान शिव ने नटराज रूप धारण किया और आनंद तांडव करते हुए अप्समार को अपने पेरो के निचे कुचल दिया। उसे भगवान शिव ने इस तरह अपने पेरो के नीचे ऐसा रखा के वो मरे भी ना और कोई उदंडता भी ना कर पाए। इस कहानी से हमें ये पता लगता है के अज्ञानता का अंधकार कितना भी गहरा हो ज्ञान की रौशनी उस अंधकार को दूर कर ही देती है।

भगवान शिव ने नटराज मुद्रा मे एक पैर से अप्समार को दबाया हुआ है और दूसरे पैर को हवा मे उठाया हुआ है जो ब्रह्मांडीय नृत्य के रूप मे सृष्टि के सृजन,पालन और अनत को दर्शाता है। इस मुद्रा मे भगवान शिव ने एक हाथ मे डमरू उठाया हुआ है जो इस अनंत ब्रह्माण्ड का प्रतिक है और दूसरे हाथ मे अगनि है जो विनाश का प्रतिक है।
नटराज रूप में शिव को चार भुजाओं और एक पैर को उठाए हुए, तांडव नृत्य करते हुए दिखाया जाता है। इस मुद्रा को ‘आनंद तांडव’ कहा जाता है, जो आनंद और सृष्टि के नृत्य का प्रतीक है। नटराज की मूर्ति में शिव को एक वृत्ताकार आग के घेरे के बीच दिखाया जाता है, जो ब्रह्मांडीय ऊर्जा और जीवन के अनंत चक्र का प्रतिनिधित्व करता है। शिव के पैरों के नीचे अपस्मार पुरुष (अज्ञानता का प्रतीक) होता है, जो यह दर्शाता है कि शिव अज्ञानता पर विजय प्राप्त करते हैं।
और पढ़े: सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति: चंद्रदेव के श्राप की कथा
चार भुजाएं और उनके अर्थ:
शिव की चार भुजाओं में से प्रत्येक का एक विशिष्ट प्रतीकात्मक अर्थ है:
1. ऊपरी दाहिनी भुजा: इसमें शिव डमरू धारण करते हैं, जो सृष्टि का प्रतीक है। डमरू की ध्वनि ब्रह्मांडीय ध्वनि ‘ओम’ का स्रोत मानी जाती है, जिससे सृष्टि का आरंभ हुआ था।
2. ऊपरी बायीं भुजा: इसमें शिव अग्नि धारण करते हैं, जो संहार का प्रतीक है। यह अग्नि यह बताती है कि हर चीज जो उत्पन्न होती है, उसे एक दिन नष्ट भी होना पड़ता है।
3. निचली दाहिनी भुजा: इस हाथ की मुद्रा ‘अभय मुद्रा’ कहलाती है, जो शांति, सुरक्षा और साहस का प्रतीक है।
4. निचली बायीं भुजा: यह भुजा शिव के उठे हुए पैर की ओर इशारा करती है, जो उद्धार और मुक्ति का प्रतीक है।
नटराज का धार्मिक और दार्शनिक महत्व:
शिव के नटराज रूप को अद्वैत वेदांत और अन्य भारतीय दर्शन में ब्रह्मांड की गहरी व्याख्या के रूप में देखा जाता है। यह रूप यह संदेश देता है कि जीवन में हर क्रिया एक निश्चित उद्देश्य से होती है और यह कि जीवन और मृत्यु के बीच के चक्र में एक गहरी सच्चाई निहित है। नटराज की मूर्ति यह भी समझाती है कि व्यक्ति को अज्ञानता और भ्रम से मुक्त होकर आत्मज्ञान की ओर बढ़ना चाहिए। अपस्मार पुरुष के ऊपर शिव के पैर का होना यह दिखाता है कि ज्ञान अज्ञानता पर विजयी होता है।
और पढ़े: भगवान विष्णु के कृष्ण, राम, वराह भगवान और नरसिम्हा अवतारों का रहस्यमयी संबंध
कला और संस्कृति में नटराज का महत्व:
नटराज की प्रतिमा न केवल धार्मिक और दार्शनिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय कला और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है। भारत की शास्त्रीय नृत्य परंपरा, विशेषकर भरतनाट्यम, में नटराज की मुद्रा और उनके नृत्य को विशेष स्थान दिया गया है। कलाकार नटराज की विभिन्न मुद्राओं से प्रेरणा लेते हैं और उनकी प्रस्तुति से जीवन के गहरे अर्थों को व्यक्त करते हैं। भारतीय मंदिरों में नटराज की प्रतिमाएं अत्यंत सामान्य हैं और इन्हें बहुत श्रद्धा के साथ पूजा जाता है।
तमिलनाडु के चिदंबरम स्थित नटराज मंदिर नटराज रूप की भक्ति का प्रमुख केंद्र है। इस मंदिर में हर साल नटराज की आराधना के लिए विशेष नृत्य उत्सवों का आयोजन किया जाता है, जहां शास्त्रीय नर्तक और नर्तकियां अपनी कला के माध्यम से नटराज की महिमा का वर्णन करते हैं।
आधुनिक युग में नटराज का रूप केवल धार्मिक महत्व तक सीमित नहीं है। यह रूप विज्ञान और विशेष रूप से भौतिकी में भी प्रतिष्ठित हुआ है। नटराज की मूर्ति को भारतीय संस्कृति के विज्ञान के साथ संबंध का प्रतीक माना जाता है। उदाहरण के लिए, नटराज की प्रतिमा को स्विट्ज़रलैंड के सर्न (CERN) प्रयोगशाला में भी स्थापित किया गया है, जो ब्रह्मांड के उत्पत्ति के रहस्यों को खोजने के प्रयासों का केंद्र है। यह इस तथ्य को दर्शाता है कि विज्ञान और धर्म दोनों ही ब्रह्मांड की गूढ़ता और जीवन के रहस्यों को समझने की कोशिश कर रहे हैं।
Pingback: बाली-सुग्रीव के जन्म की अनसुनी कहानी - Devinestories.in