भगवान विष्णु इस सृष्टि के पालनहार है, वो ही समय समय पर जब जब आसुरी शक्तियां अधर्म करती है या अधर्म धर्म से अधिक बढ़ने लगता है तब भगवान विष्णु अवतार लेकर सृष्टि का संतुलन बनाये रखते है। भगवान विष्णु के प्रमुख 10 अवतार माने जाते है जिन्हे हम दशावतार (भगवान मत्स्य, भगवान कुरमा, भगवान वराह, भगवान नरसिम्हा, भगवान वामन, भगवान परशुराम , भगवान राम, भगवान कृष्ण, भगवान बुद्ध, भगवान कल्कि) कहते है।
लेकिन क्या आप जानते है के नारद मुनि जिन्हे देव ऋषि भी कहते है, उनके किस श्राप के कारण भगवान विष्णु को अवतार लेना पड़ा था ?..
देवऋषि नारद को भगवान विष्णु का आंशिक अवतार भी कहा जाता है औऱ वे भगवान विष्णु के अनन्य भक्त भी है। वे पुरे संसार मे भ्रमण करते है औऱ भगवान विष्णु का नाम जपते रहते है। ये भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र भी है। नारद मुनि का वाद्य यंत्र वीणा है। लेकिन अपने इष्ट के इतने बड़े भक्त होने पर भी देव ऋषि नारद मुनि ने उन्हें ही श्राप दे दिया आइये जानते है।कथा कुछ इस प्रकार है –
कथा :
एक बार नारद मुनि को अपने काम पर वश करने का घमंड हो गया। वे वैकुंठ मे भगवान विष्णु के पास आये औऱ भगवान विष्णु का गुणगान किया किन्तु भगवान श्री हरी ने उनके अहंकार को भानप लिया औऱ नारद को उनके अहंकार से बाहर लाने के लिए भगवान ने एक माया रची।
देवऋषि जब सारे संसार मे भ्रमण कर रहे थे तो श्री हरी की माया से उन्हें आकाश से एक सुन्दर नगर दिखा ।नगर को देखने के लिए नारदजी वंहा से गुज़रे वंहा उन्होंने एक अयंत सुन्दर राजकुमारी को देखा औऱ उस पर मोहित हो गए ।वंहा उन्हें नगर मे पता लगा के उस राजकुमारी का स्वयंवर है।
तो उस सुन्दर राजकुमारी से विवाह करने के लिए देवऋषि ने सोचा के अपने प्रभु से कहकर अपना सुन्दर रूप बनवा लेता हु ताकि ये राजकुमारी बस मुझि से विवाह करें। पर वो नहीं जानते थे के ये उन्ही के प्रभु श्री हरी विष्णु की माया है जो उन्हें उनके काम पर वश करने के घमंड को खत्म करने के लिए थी ।
नारदजी इस बात से अनजान वैकुंठ मे भगवान विष्णु के समीप पहुछे औऱ सब बोल दिया के उन्हें सुन्दर रूप चाहिए ताकि वे उस राजकुमारी से शादी कर सके। भगवान विष्णु मुस्कुराये औऱ बोला के जो तुम्हारे लिए सही होगा वो मे अवश्य करूँगा। भगवान विष्णु ने उनका चेहरा एक बन्दर के जैसा बना दिया औऱ नारद जी खुद को बहोत रूपवान समझ कर उस स्वयंवर मे जा पुहंचे।
लेकिन जो नारदजी सोच कर गए थे उसका उलट हुआ औऱ सभी ने उनका उपहास किया औऱ उन्हें देख कर उनकी हसीं उड़ाई । उस राजकुमारी ने भी वानर मुख वाले नारदजी को देखा भी नहीं औऱ वंही पास मे खडे एक रूपवान पुरुष के गले मे वरमाला डाल दी। नारदजी ने देखा के ये तो श्री हरी है तो उन्होंने मे क्रोध मे आकर उन्हें श्राप दिया के जिस तरह मे स्त्री के वियोग मे दुखी हुई उसी तरह आप भी दुखी होंगे औऱ आपको मनुष्य रूप लेना पड़ेगा औऱ जिस वानर का रूप आपने मुझे दिया है उन्ही वानारो की सहायता से ही तुम स्त्री तक पहुंच पाओगे।
इतना कहते ही श्री हरी मुस्कुराये औऱ अपनी माया को खत्म कर दिया ये सब खतम होते ही नारदजी होश मे आये तो श्री हरी विष्णु से पूछा के ये सब क्या था , तो इस पर श्री हरी ने सब कह सुनाया औऱ नारदजी को सब समझ आया औऱ उनका अहंकार काम हुआ। साथ ही अपने इष्ट से क्षमा प्रार्थना भी की। इसी श्राप के कारण भगवान विष्णु को राम अवतार लेना पड़ा जंहा उन्हें देवी सीता से वियोग सहना पड़ा औऱ वानारो की सेना की मदद से उन्होंने राक्षस राज रावण जो एक महादेत्य था उसका वध किया।