नरसिंह अवतार: भगवान विष्णु का चौथा अवतार

नरसिंह अवतार-हिंदू धर्म में भगवान विष्णु को सृष्टि के पालनहार के रूप में पूजा जाता है। जब-जब धरती पर अधर्म बढ़ता है और धर्म का नाश होता है, तब-तब भगवान विष्णु विभिन्न अवतारों के रूप में प्रकट होते हैं। इन्हीं अवतारों में से एक है नरसिंह अवतार, जो भगवान विष्णु का चौथा अवतार माना जाता है। यह अवतार अत्यंत अद्भुत, रहस्यमयी और शक्ति से भरपूर है। नरसिंह अर्थात आधा नर और आधा सिंह, इस रूप में भगवान विष्णु ने अधर्म और अहंकार का अंत कर धर्म की स्थापना की।

नरसिंह अवतार
नरसिंह अवतार

 

नरसिंह अवतार की कथा

भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की कथा का संबंध उनके एक महान भक्त प्रह्लाद और उसके पिता हिरण्यकश्यप से है। हिरण्यकश्यप एक अत्यंत बलशाली असुर था और वह भगवान विष्णु का कट्टर विरोधी था क्युकी भगवान विष्णु ने उसके भाई का वध वराह अवतार के रूप मे किया था। उसने भगवान विष्णु से बदला लेने और अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए भगवान ब्रह्मा की तपस्या की।
तपस्या कर उसने भगवान ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त कर लिया था कि वह न दिन मे मरेगा, न रात में; न घर में, न बाहर; न किसी जीवित प्राणी से, न निर्जीव से; न हथियार से, न अस्त्र-शस्त्र से; न आकाश में, न पृथ्वी पर। इस वरदान के कारण वह अजेय बन गया और अत्याचारी हो गया। उसने अपने वरदान का दुरूपयोग कर के सभी देवताओं, ऋषिओ और समस्त पृथ्वी को ऍबे अधीन कर लिया ।

हिरण्यकश्यप चाहता था कि सभी लोग उसकी पूजा करें, लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद विष्णु भक्त था और हमेशा “नारायण, नारायण” का जाप करता था। हिरण्यकश्यप ने उसे कई प्रकार से मारने का प्रयास किया, लेकिन भगवान विष्णु ने हर बार प्रह्लाद की रक्षा की। एक बार उसने अपने पुत्र को मारने के लिए उसे अग्नि मे बैठा दिया किन्तु वह वंहा भी भगवान श्री हरी विष्णु की कृपा से बच गया ।

अंततः जब हिरण्यकश्यप ने क्रोधित होकर उससे कहा ,“ के कंहा है तेरा विष्णु ,बुला उसे , क्या तेरा भगवान इस खंभे में भी है?”, प्रह्लाद ने उत्तर दिया – “हाँ, भगवान सर्वत्र हैं।” तभी हिरण्यकश्यप ने खंभे पर प्रहार किया, और उसी क्षण उस खंभे से भगवान विष्णु नरसिंह के रूप में प्रकट हुए – आधा मानव और आधा सिंह, अत्यंत विकराल और तेजस्वी रूप में।

हिरण्यकश्यप का वध

नरसिंह भगवान ने हिरण्यकश्यप को न दरवाजे के अंदर मारा, न बाहर; न दिन में, न रात में; न अस्त्र से, न शस्त्र से; न आकाश में, न पृथ्वी पर। उन्होंने उसे संध्या के समय, दरवाजे की चौखट पर, अपनी गोद में बिठाकर, अपने नाखूनों से चीर कर मार डाला। इस प्रकार ब्रह्मा जी का वरदान भी अक्षुण्ण रहा और अधर्म का अंत भी हो गया।

नरसिंह जयंती

हर साल वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को नरसिंह जयंती मनाई जाती है, जो भगवान के इस दिव्य अवतार के प्राकट्य का उत्सव है। इस दिन भक्त उपवास करते हैं, व्रत-पूजा करते हैं और भगवान नरसिंह की स्तुति करते हैं।

 

नरसिंह अवतार का महत्व

नरसिंह अवतार यह दर्शाता है कि ईश्वर अपने भक्तों की रक्षा के लिए किसी भी रूप में प्रकट हो सकते हैं, और अधर्म चाहे कितना भी बलशाली क्यों न हो, उसका अंत निश्चित है। यह अवतार अहंकार के विनाश और भक्ति की महिमा का प्रतीक है।

नरसिंह अवतार भगवान विष्णु के सबसे शक्तिशाली और रहस्यमयी रूपों में से एक है। यह अवतार हमें यह सिखाता है कि सच्ची भक्ति और धर्म की राह पर चलने वालों की रक्षा स्वयं भगवान करते हैं। नरसिंह भगवान का स्वरूप आज भी भक्तों में साहस, आस्था और अधर्म के विरुद्ध संघर्ष की प्रेरणा देता है।

 

जय श्री नरसिंह भगवान

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